लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 मनोविज्ञान

बीए सेमेस्टर-3 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2647
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-3 मनोविज्ञान सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 6

प्रतिसामाजिक व्यवहार : सहायता के प्रेरक

(Pro-Social Behaviour : Motives to Help )

 

प्रश्न- समाजोपकारी व्यवहार का अर्थ और इसके निर्धारकों पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
सहायतापरक व्यवहार की विशेषताओं को बताइए। सहायतापरक व्यवहार के प्रमुख निर्धारकों का भी वर्णन कीजिए।
अथवा
सहायतापरक व्यवहार और परोपकार के निर्धारक तत्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रतिसामाजिक व्यवहार क्या है? इसके व्यक्तिगत तथा सामाजिक-सांस्कृतिक निर्धारकों की विवेचना कीजिए।
अथवा
परोपकारिता का अर्थ स्पष्ट कीजिए व इसके निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. सहायतापरक व्यवहार के परिस्थितिजन्य कारकों का वर्णन कीजिए।
2. दर्शक प्रभाव क्या है? उदाहरण सहित समझाइये।
3. सामाजिक कारक किस प्रकार सहायतापरक व्यवहार को प्रभावित करते हैं?
4. प्रतिसामाजिक व्यवहार के संदर्भ में सामाजिक-सांस्कृतिक निर्धारकों की विवेचना कीजिए।
5. व्यक्तिगत कारकों की सहायतापरक व्यवहार में क्या भूमिका है?
6. परोपकारी व्यवहार से आप क्या समझते हैं?
7. व्यक्तिगत, परिस्थितिजन्य एवं सामाजिक-सांस्कृतिक निर्धारक कैसे परोपकारी व्यवहार को प्रेरति करते हैं?

उत्तर -

परोपकारिता का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Altruism)

परोपकारिता या प्रतिसामाजिक व्यवहार एक प्रकार का सहायतापरक व्यवहार है। ऐसे व्यवहारों को मानवीय, वांछित, अनुकूल या धनात्मक व्यवहार माना जाता है। ऐसे व्यवहारों से समाज में सामंजस्य तथा सद्भाव की भावना बढ़ती है। प्रतिसामाजिक व्यवहार वैसे व्यवहार को कहते हैं, जिससे व्यवहार करने वाले को कोई स्पष्ट लाभ न होकर कभी-कभी कुछ हानि भी उठानी पड़ती है। ऐसे व्यवहार का आधार आचरण के नैतिक मानक होते हैं।

परोपकार एक प्रकार का समाज के हित में किया गया व्यवहार है। इस प्रकार के व्यवहार को परोपकारिता, समाजोपयोगी तथा सहायतापरक व्यवहार भी कह सकते हैं। ऐसे व्यवहार को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न रूप में परिभाषित किया है, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

रैथस (Rathus, 1984) के अनुसार, “ बिना स्वार्थ के दूसरों के कल्याण के प्रति चिन्तित होना परोपकारिता कहा जाता हैं।

मायर्स (Myers, 1988 ) के अनुसार, “परोपकारिता का आशय लाभ या प्रतिफल की आशा किये बिना दूसरों की चिन्ता तथा सहायता करने तथा अपने स्वार्थों के प्रति सचेष्ट हुए बिना दूसरों के प्रति समर्पित होने से है।"

बेरोन एवं बर्न (Baron and Byrne, 1987) के अनुसार, “प्रतिसामाजिक व्यवहार वैसे व्यवहार को कहा जाता है, जिसमें व्यवहार करने वाले को कोई स्पष्ट लाभ नहीं होता है बल्कि इससे उनमें कुछ खतरा बढ़ जाता है या उन्हें कुछ बलिदान भी करना पड़ता है। ऐसे व्यवहार का आधार आचरण के नैतिक मानक होते हैं।"

प्रतिसामाजिक व्यवहार की विशेषताएं
(Characteristics of Altruism)

प्रतिसामाजिक व्यवहार की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. प्रतिसामाजिक व्यवहार का आशय दूसरों का कल्याण करना होता है।
2. यह व्यवहार व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से करता है।
3. इसका उद्देश्य दूसरों को लाभ पहुँचाकर उनका कल्याण करना होता है।
4. इसमें सहायता करने वाले का कोई स्वार्थ नहीं होता है।
5. सहायता करने वाले को कभी-कभी हानि का सामना भी करना पड़ता है।
6. ऐसा व्यवहार व्यक्ति एवं समाज के लिए कल्याणकारी होता हैं।
7. ऐसा व्यवहार नैतिक मान्यताओं द्वारा प्रेरित होता है।

परोपकारिता एवं समाजोपयोगी व्यवहार के निर्धारक
(Determinants of Altruism and Prosocial Behaviour)

परोपकारिता या समाजोपयोगी व्यवहार को उत्पन्न करने में अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है। इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है

(1) परिस्थितिजन्य निर्धारक,
(2) सामाजिक निर्धारक, तथा
(3) व्यक्तिगत निर्धारक।

(1) परिस्थितिजन्य निर्धारक
(Situational determinants)

परिस्थितजन्य निर्धारकों में उन कारकों को रखा जाता है जो परिस्थिति विशेष से संबंधित होते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं-

1. सहायता की पुकार (Cry for Help) - अगर संकटकालीन परिस्थिति में कोई व्यक्ति करुण ढंग से सहायता के लिये पुकारता है तो परिस्थिति को आपातकालीन समझ कर लोग शीघ्रता से सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

2. दर्शक का प्रभाव (Bystander's Effect) - परोपकारिता व्यवहार घटित होने के समय या बाद में दर्शकों की उपस्थिति का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ता है। संकटकालीन परिस्थिति में जैसे-जैसे दर्शकों की संख्या में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे दर्शकों द्वारा परोपकारी व्यवहार दिखलाने की संभावना में कमी आती जाती है। इसे दर्शक का प्रभाव कहते हैं। दर्शक प्रभाव के निम्नलिखित कारण होते हैं -

(i) संकटकालीन परिस्थिति में दर्शकों की संख्या अधिक होने पर उनमें संकटकालीन परिस्थिति का ठीक ढंग से प्रत्यक्षण करने की संभावना नहीं होती है, जिसके कारण उनमें परोपकारी व्यवहार करने की संभावना नहीं होती है।
(ii) अधिक संख्या में दर्शक होने से दर्शक परिस्थिति को आपातकालीन नहीं मानते हैं।
(iii) यदि परिस्थिति अस्पष्ट है तो दर्शक सहायता के लिए पहल नहीं करते हैं।
(iv) यदि दर्शक आपस में या संकटग्रस्त व्यक्ति से अपरिचित हैं, तो वे प्रायः सहायता करने में आनाकानी करते हैं।
(v) यदि दर्शकों की संख्या अधिक है तो उनमें उत्तरदायित्व (Responsibility) की भावना कम हो जाती है जिसके कारण उनके द्वारा सहायता करने की सम्भावना कम हो जाती है।

लताने एवं डालीं (Latane and Darley, 1970) - ने इस संप्रत्यय का प्रतिपादन किया और इस सम्बन्ध में कई अध्ययन किये। उन्होनें कहा कि संकटकालीन परिस्थिति में सहायतापरक व्यवहार में कमी तब आती है जब-

(i) संकटकालीन परिस्थिति का स्वरूप स्पष्ट नहीं होता है।
(ii) परिस्थिति में उपस्थित दर्शक जब अजनबी होते हैं तो वे आसानी से एक-दूसरे की प्रतिक्रियाओं को समझ नहीं पाते हैं।

3. समय की कमी (Lack of Time ) - जब परिस्थिति ऐसी होती है कि व्यक्ति व्यस्त हों और उनके पास समय की कमी हो तो सहायतापरक व्यवहार की प्रवृत्ति में कमी आती है।

4. हानि की संभावना (Probability of Loss) - हानि की संभावना सहायतापरक व्यवहार को प्रभावित करती है। पिलियविन तथा पिलियविन (Pilliavin and Pilliavin, 1972) ने अपने अध्ययन के आधार पर पाया कि यदि सहायता करने वाले को यह आशंका है कि परोपकार में फंसने के कारण उसको नुकसान उठाना पड़ सकता है तो वह परोपकारी व्यवहार से मुँह मोड़ लेगा।

(2) सामाजिक निर्धारक
(Social Determinants
)

समाज के मानकों, मूल्यों आदि से प्रभावित होने वाले कारकों को सामाजिक कारक कहते हैं। ये निम्नलिखित हैं और सहायतापरक व्यवहार को सीधे प्रभावित करते हैं -

1. सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility) - इस मानक के अनुसार एक व्यक्ति दूसरों की सहायता इसलिए करता है कि दूसरों की सहायता करना उसके लिए समाज का एक मानक है। वह अपने समाज के नियमों, मानकों एवं मूल्यों को ध्यान में रखकर सहायता करता है। ऐसे सामाजिक मानक के अनुसार दूसरों की मद्द करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक दायित्व माना जाता है।

2. पारस्परिकता (Reciprocity) - पारस्परिकता के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की मदद तभी करता है जब वह यह समझता है कि वह व्यक्ति भविष्य में उसकी मदद करेगा। बर्कोविज (Berkowitz, 1966) ने कहा है कि यदि व्यक्ति यह समझता है कि दूसरा व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करेगा या अतीत में सहायता कर चुका है तो उस दूसरे व्यक्ति की सहायता करने के लिए वह आगे आएगा। यदि सहायता करना बाध्यता है तो व्यक्ति मन से सहायता नहीं करेगा।

3. सामाजिक विनिमय (Social Exchange) - सहायतापरक व्यवहार की परिस्थिति में व्यक्ति न्यूनतम हानि एवं अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहता है। सहायतापरक व्यवहार के कारण उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों में समय तथा परिश्रम का अपव्यय, संकट में फंसना तथा लाभ की संभावना, प्रशंसा, प्रतिष्ठा, आभार प्रदर्शन आदि आते हैं।

(3) व्यक्तिगत निर्धारक
(Individual Determinants)

सहायतापरक व्यवहार में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। कुछ व्यक्तिगत कारक होते हैं जो सहायतापरक व्यवहार को प्रेरित करते हैं। ऐसे कारक निम्नलिखित हैं-

1. समानता (Similarity) बेरोन (Baron, 1971) - ने अपने अध्ययनों में पाया कि यदि सहायता करने वाले और सहायता पाने वाले व्यक्तियों में व्यावहारिक, वैचारिक आदि समानता है तो सहायता करने वाला व्यक्ति परोपकारिता का व्यवहार शीघ्रता से प्रदर्शित करेगा। सहायतापरक व्यवहार पर पीड़ित व्यक्ति तथा सहायता प्रदान करने वाले व्यक्ति के बीच समानता का सीधा एवं प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

2. पसन्दगी (Likings) - अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति जिसे पसन्द करता है उसकी वह मदद करना चाहता है। इसके विपरीत जिसे वह पसन्द नहीं करता है, उसकी मदद करने में टाल-मटोल करता है।

3. प्रजाति (Race) - परोपकारिता पर प्रजाति का भी प्रभाव पड़ता है। लोग एक-दूसरे की सहायता जाति या धर्म के आधार पर करते हैं। गेरटनर तथा बिकमैन (Geartner and Bickman, 1971) ने अध्ययन के आधार पर प्रमाणित किया कि गोरे लोग कालों की अपेक्षा गोरे लोगों की सहायता अधिक करते हैं।

4. पीड़ित व्यक्ति का लिंग (Sex of Victim ) - सहायतापरक व्यवहार पर पीड़ित व्यक्ति के लिंग का भी प्रभाव पड़ता है। यदि पीढ़ित व्यक्ति महिला है तथा आकर्षक भी है तो संकट में पड़ जाने पर उसकी सहायता के लिए पुरुष लोग अधिक आसानी से उसके आगे आयेगें।

5. मनोदशा (Mood) - यदि व्यक्ति सुखद मनोदशा में है तो वह सहायतापरक व्यवहार अधिक करेगा। इसके विपरीत यदि वह अवसाद की दशा में होगा तो वह सहायतापरक व्यवहार में कम रुचि लेगा। अध्ययनों से ज्ञात होता है कि बुरी या असंतोषजनक मनोदशा में सहायतापरक व्यवहार में कमी आती है।

6. व्यक्तित्व (Personality) - सहायतापरक व्यवहार पर सहायता करने वाले की व्यक्तित्व विशेषताओं का प्रभाव पड़ता है। बर्कोविज (Berkowitz, 1964 ) ने अपने अध्ययनों में पाया कि सामाजिक, बहिर्मुखी, मित्रवत संवेदनशील एवं दायित्वपूर्ण विशेषताओं के लोग दूसरों की सहायता अधिक करते हैं। निष्कर्ष यह है कि जिनमें अनुमोदन की प्रेरणा होती है वे सहायतापरक व्यवहार अधिक करते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र की व्याख्या करें।
  2. प्रश्न- सामाजिक व्यवहार के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिए। इसके अध्ययन की दो महत्वपूर्ण विधियों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  5. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  6. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान में सर्वेक्षण विधि के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  7. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान में क्षेत्र अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार तथा गुण दोषों पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान को परिभाषित कीजिए। इसकी प्रयोगात्मक तथा अप्रयोगात्मक विधियों की विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- अन्तर- सांस्कृतिक शोध विधि क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान की आधुनिक विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक व्यवहार के अध्ययन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- समाज मनोविज्ञान के महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अर्ध-प्रयोगात्मक विधि का वर्णन कीजिये।
  14. प्रश्न- क्षेत्र अध्ययन विधि तथा प्रयोगशाला प्रयोग विधि का तुलनात्मक अध्ययन कीजिये।
  15. प्रश्न- समाजमिति विधि के गुण-दोष बताइये।
  16. प्रश्न- निरीक्षण विधि पर टिप्पणी लिखिये।
  17. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके स्वरूप को समझाइए।
  18. प्रश्न- प्रभावांकन के साधन की व्याख्या कीजिए तथा यह किस प्रकार व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में सहायक है? स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दूसरे व्यक्तियों के बारे में हमारे मूल्यांकन पर उस व्यक्ति के व्यवहार का क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए
  20. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण से आप क्या समझते हैं? यह जन्मजात है या अर्जित? विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- चित्रीकरण करना किसे कहते हैं?
  22. प्रश्न- अवचेतन प्रत्यक्षण किसे कहते हैं?
  23. प्रश्न- सामाजिक प्रत्यक्षण पर संस्कृति का क्या प्रभाव पड़ता है?
  24. प्रश्न- छवि निर्माण किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- आत्म प्रत्यक्षण किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- व्यक्ति प्रत्यक्षण में प्रत्यक्षणकर्ता के गुणों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- प्रत्यक्षपरक सुरक्षा किसे कहते हैं?
  28. प्रश्न- सामाजिक अनुभूति क्या है? सामाजिक अनुभूति का विकास कैसे होता है?
  29. प्रश्न- स्कीमा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  30. प्रश्न- सामाजिक संज्ञानात्मक के तहत स्कीमा निर्धारण की प्रक्रिया कैसी होती है? व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- बर्नार्ड वीनर के गुणारोपण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- केली के सह परिवर्तन गुणारोपण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- क्या स्कीमा स्मृति को प्रभावित करता है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  34. प्रश्न- क्या सामाजिक अनुभूति में सांस्कृतिक मतभेद पाए जाते हैं?
  35. प्रश्न- स्कीम्स (Schemes) तथा स्कीमा (Schema) में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- मनोवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसके घटकों को स्पष्ट करते हुए इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए अभिवृत्ति में परिवर्तन लाने के उपायों का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- मनोवृत्ति परिवर्तन में हाईडर के संतुलन सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  39. प्रश्न- संज्ञानात्मक अंसवादिता से आप क्या समझते हैं? फेसटिंगर ने किस तरह से इसके द्वारा मनोवृत्ति परिवर्तन की व्याख्या की?
  40. प्रश्न- मनोवृत्ति की परिभाषा दीजिए। क्या इसका मापन संभव है? अभिवृत्ति मापन की किसी एक विधि की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- मनोवृत्ति मापन में लिकर्ट विधि का मूल्यांकन कीजिए।
  42. प्रश्न- मनोवृत्ति मापन में बोगार्डस विधि के महत्व का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- अभिवृत्ति मापन में शब्दार्थ विभेदक मापनी का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- अभिवृत्ति को परिभाषित कीजिए। अभिवृत्ति मापन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- मनोवृत्ति को परिभाषित कीजिए। मनोवृत्ति के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण क्या है? इसके स्वरूप तथा निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- अभिवृत्ति के क्या कार्य हैं? लिखिए।
  48. प्रश्न- अभिवृत्ति और प्रेरणाओं में अन्तर समझाइये।
  49. प्रश्न- अभिवृत्ति मापन की कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
  50. प्रश्न- थर्स्टन विधि तथा लिकर्ट विधि का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  51. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण में वैयक्तिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- “अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण होने का एक मुख्य आधार समानता है।" विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- आक्रामकता को स्पष्ट कीजिए एवं इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- क्या आक्रामकता जन्मजात होती है? एक उपयुक्त सिद्धान्त द्वारा इसकी आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- कुंठा आक्रामकता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- क्या आक्रामकता सामाजिक रूप से एक सीखा गया व्यवहार होता है? एक उपयुक्त सिद्धान्त द्वारा इसकी आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- आक्रामकता के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- कुंठा-आक्रामकता सिद्धान्त को बताइए।
  60. प्रश्न- आक्रामकता को उकसाने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए। अपने उत्तर के पक्ष में प्रयोगात्मक साक्ष्य भी दें।
  61. प्रश्न- मानवीय आक्रामकता के वैयक्तिक तथा सामाजिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजोपकारी व्यवहार का अर्थ और इसके निर्धारकों पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- प्रतिसामाजिक व्यवहार का स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार के सामाजिक व सांस्कृतिक निर्धारक का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- परोपकारी व्यवहार को किस प्रकार उन्नत बनाया जा सकता है?
  66. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार किसे कहते हैं?
  67. प्रश्न- सहायतापरक व्यवहार के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- अनुरूपता से क्या आशय है? अनुरूपता की प्रमुख विशेषताएँ बताते हुए इसको प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- अनुरूपता के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- पूर्वाग्रह की उपयुक्त परिभाषा दीजिये तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। पूर्वाग्रह तथा विभेद में अन्तर बताइये।'
  71. प्रश्न- सामाजिक पूर्वाग्रहों की प्रवृत्ति की संक्षिप्त रूप में विवेचना कीजिए। इसके हानिकारक प्रभावों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है? उदाहरण देकर अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।
  72. प्रश्न- पूर्वाग्रह कम करने की तकनीकें बताइए।
  73. प्रश्न- पूर्वाग्रह से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं एवं स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- आज्ञापालन (Obedience) पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- दर्शक प्रभाव किसे कहते हैं?
  76. प्रश्न- पूर्वाग्रह की प्रकृति एवं इसके संघटकों की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पूर्वाग्रह के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- पूर्वाग्रह के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- पूर्वाग्रह के विकास और सम्पोषण में निहित प्रमुख संज्ञानात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- पूर्वाग्रह एवं विभेदन को कम करने के लिये कुछ कार्यक्रमों की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- समूह समग्रता से आप क्या समझते हैं? समूह समग्रता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिये।
  82. प्रश्न- समूह मानदंड क्या है? यह किस प्रकार से समूह के लिए कार्य करते हैं?
  83. प्रश्न- समूह भूमिका किस प्रकार अपने सदस्यों के लिए कार्य करती है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- निवैयक्तिकता से आप क्या समझते हैं? प्रयोगात्मक अध्ययनों से निवैयक्तिकता की प्रक्रिया पर किस तरह का प्रकाश पड़ता है?
  85. प्रश्न- “सामाजिक सरलीकरण समूह प्रभाव का प्रमुख साधन है। व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- “निर्वैयक्तिता में व्यक्ति अपनी आत्म- अवगतता खो देता है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- समूह के प्रकार बताइये।
  88. प्रश्न- सामाजिक श्रमावनयन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों का उल्लेख कीजिए और इसे किस तरह से कम किया जा सकता है? विवेचना कीजिए।
  89. प्रश्न- आज्ञापालन (Obedience) पर टिप्पणी लिखिये।
  90. प्रश्न- समूह निर्णय पर टिप्पणी लिखिये।
  91. प्रश्न- सामाजिक श्रमावनयन पर टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- समूह की संरचना पर टिप्पणी लिखिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book